बप्पा के भक्तों को पूरे साल गणपति उत्सव का इंतजार बड़ी बेसब्री के साथ रहता है। गणपति उत्सव गणेश चतुर्थी के साथ शुरू होता है और अनंत चतुर्दशी के दिन समाप्त होता है। इस साल गणेश चतुर्थी 7 सितंबर को मनाया जाएगा। गणपति जी के जन्मोत्सव को गणेश चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश का जन्म हुआ था। देशभर में पूरे 10 दिनों तक गणपति उत्सव की धूम रहती है। इस दौरान भक्त बप्पा की भक्ति में पूरी तरह डूबे रहते हैं और हर गणपति बप्पा मोरया की गूंज सुनाई देती है।
गणेश चतुर्थी के दिन भक्तगण बप्पा की प्रतिमा को घर लाते हैं और विधिपूर्वक, नियम के साथ इसकी स्थापना करते हैं। गजानन जी की प्रतिमा घर में पूरे 10 दिनों तक रखा जाता है लेकिन अगर ऐसा संभव नहीं तो 1, 3,5, 7 या 10 दिन तक गणेश जी को घर में विराजमान कर सकते हैं। गौरीपुत्र गणेश की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि और सौभाग्य बनी रहती है। अगर आप अपने घर में गणपति जी को स्थापित नहीं कर पा रहे हैं तो रोजाना उनकी पूजा करने से भी शुभ फलों की प्राप्ति कर सकते हैं। तो आइए जानते हैं कि मूर्ति स्थापना से लेकर गणेश जी की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त क्या रहेगा।
गणेश चतुर्थी शुभ मुहूर्त 2024
- भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि आरंभ- 6 सितंबर को दोपहर 3 बजकर 1 मिनट से
- भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि समाप्त- 7 सितंबर को शाम 5 बजकर 37 मिनट तक
- गणेश चतुर्थी तिथि- शनिवार, 7 सितंबर 2024
- गणेश विसर्जन तिथि- मंगलवार, 17 सितंबर 2024
गणेश चुतर्थी 2024 पूजा शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, गणेश चतुर्थी के दिन बप्पा की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 3 मिनट से शुरू होगा, जबकि इसका समापन दोपहर 1 बजकर 34 मिनट पर होगा। भक्तगण इसी मुहूर्त में गणपति जी मूर्ति को अपने घर में स्थापित करें। गजानन जी की मूर्ति विधिपूर्वक ही स्थापित करें। वहीं गणेश जी की वो मूर्ति ही घर लाएं जिसमें उनकी सूंड बाईं ओर हो।
गणपति जी की कथा भारतीय पौराणिक कथाओं में अत्यंत महत्वपूर्ण है और उनके जन्म और जीवन की कई कहानियाँ प्रचलित हैं। यहां गणपति जी की एक प्रसिद्ध कथा प्रस्तुत है:
गणपति जी की कथा
गणपति जी का जन्म
भगवान गणेश की कथा महादेव शिव और देवी पार्वती से जुड़ी हुई है। एक दिन देवी पार्वती ने स्नान करते समय अपनी त्वचा की सफाई के लिए एक कनक (मिट्टी) बनाई और उसे एक छोटे बच्चे के रूप में सजीव कर दिया। देवी पार्वती ने उस कनक को जीवन प्रदान किया और उसे घर के बाहर अपने रक्षक के रूप में नियुक्त किया। इस कनक के रूप में जन्मे बालक को गणेश के नाम से जाना गया।
गणपति जी का शिव से मिलन
एक दिन भगवान शिव घर पर आए, लेकिन गणेश ने उन्हें दरवाजे पर ही रोक दिया क्योंकि वह अपनी मां की अनुमति के बिना किसी को अंदर आने की अनुमति नहीं देता था। शिव जी ने गणेश को अपनी पहचान बताई और कहा कि वह उनके पति हैं। फिर भी गणेश ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया। अंततः शिव जी को गणेश की इस निष्ठा और समर्पण को देखकर उनकी वास्तविकता का अहसास हुआ। शिव जी ने गणेश को पहचान लिया और उनकी माता पार्वती को बताया कि यह उनका पुत्र है।
गणेश को आशीर्वाद
शिव जी ने गणेश की निष्ठा और बलिदान को देखते हुए उन्हें आशीर्वाद दिया कि वे विघ्नहर्ता होंगे और उनके पूजन से सभी बाधाएं समाप्त होंगी। गणेश को विद्या, समृद्धि, और बुद्धि का देवता मानते हुए शिव जी ने उन्हें गणों का राजा घोषित किया। गणेश को हर काम की शुरुआत में पूजने का आदेश दिया गया ताकि हर कार्य सफल और बिना विघ्न के पूरा हो सके।
गणपति जी के सिर का परिवर्तन
एक बार जब गणेश को अपनी मां के साथ खेलने का आदेश मिला, तो वह जंगल में चला गया। वहां एक राक्षस ने उसकी उपस्थिति को देखकर उसे मार डालने की कोशिश की। राक्षस ने गणेश का सिर काट दिया, लेकिन पार्वती को इस बारे में पता चला और उसने शिव जी से प्रार्थना की। शिव जी ने तत्काल एक हाथी के सिर को गणेश के शरीर से जोड़ दिया और उसे जीवित कर दिया।
गणपति जी की पूजा
गणेश जी को विघ्नहर्ता और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। उनकी पूजा विशेष रूप से गणेश चतुर्थी के अवसर पर बड़े धूमधाम से की जाती है। इस दिन भक्त गणेश की मूर्तियों की स्थापना करते हैं, उनका पूजन करते हैं, और उनके प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति प्रकट करते हैं।
गणेश जी की पूजा से जीवन में सुख-समृद्धि, बाधाओं से मुक्ति और सफलता प्राप्त होती है। उनके सरल और दयालु स्वरूप के कारण वे सभी वर्गों के लोगों द्वारा पूजे जाते हैं और हर धार्मिक अनुष्ठान की शुरुआत में उनकी पूजा की जाती है।
यह कथा गणेश जी की महानता और उनके प्रति श्रद्धा को दर्शाती है, जो उन्हें भारतीय पौराणिक कथाओं में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करती है।